उत्तराखंड की सियासत में दो दशक बाद सत्ता परिवर्तन से जुड़ा मिथक आखिर टूट ही गया। चुनाव में भाजपा ने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल कर लिया है। उत्तराखंड की राजनीति में सबसे बड़ा मिथक यह था कि किसी भी दल को लगातार दूसरी बार जीत नहीं मिली है। इस मिथक को तोड़ने में भाजपा कामयाब रही है। 2017 की तुलना में भले ही भाजपा को विधानसभा सीटों का नुकसान हुआ है, लेकिन सरकार बनाने के लिए भाजपा को बहुमत मिला गया है। उत्तराखंड की सियासत में पहली बार कई मिथक टूटे हैं। जबकि कई मिथक इस चुनाव में सही साबित हुए हैं। तो वहीँ वर्तमान सीएम धामी के सामने भी इस मिथक को तोड़ने की चुनौती थी, लेकिन वे अपने दुर्ग नहीं बचा पाए। यहां की सियासत में यह भी मिथक है कि मुख्यमंत्री चुनाव नहीं जीतता है। राज्य गठन होने के बाद 2002 में पहला आम चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस से नारायण दत्त तिवारी सीएम बने, लेकिन 2007 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। 2007 में भाजपा के मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी सीएम बने। उन्हें 2012 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। 2012 में कांग्रेस फिर सत्ता में आई और विजय बहुगुणा सीएम बने, लेकिन उन्होंने 2017 का चुनाव नहीं लड़ा। बहुगुणा के बाद सीएम बने हरीश रावत ने किच्छा और हरिद्वार से चुनाव लड़ा। वे दोनों ही सीटों पर चुनाव हार गए थे। वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत ने चुनाव नहीं लड़ा। मुख्यमंत्री धामी ने तीसरी बार खटीमा से चुनाव मैदान में थे। यहां से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके अलावा भी चुनाव से जुड़े कई मिथक टूटे हैं तो कई अभी भी बरकरार हैं।
दो दशक बाद सत्ता परिवर्तन से जुड़ा मिथक आखिर टूट ही गया, तो कई मिथक बरकरार
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