संवाददाता “आरती पांडे”
चमोली – इस समय जोशीमठ का चमोली इलाका धंस रहा है और लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. जिस पर कई लोग गुस्साए हुए हैं तो कई लोग डरे हुए हैं…… सरकार अपना काम कर रही है और लोग अपना काम कर रहे हैं…. नए-नए न्यूज़ मीडिया चैनल वहां पर मौजूद हैं जो खबरों पर लाइव अपडेट दे रहे हैं. वही ऐसा असल में वह क्यों रहा है इस बात का पता करने भू-वैज्ञानिक टीम भी वहां पर मौजूद है. परंतु भू-वैज्ञानिक टीम का अपना एक तर्क है, लोगों का अपना एक तर्क है…. परंतु जो आज वजह हम आपके साथ साझा करना चाहते हैं वह गूगल और इंटरनेट से निकाल कर हम आपके साथ साझा कर रहे हैं….
सबसे पहली बार ड्रेनेज व सीवरेज व्यवस्था – पिछले साल 16 से 19 अगस्त के बीच राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला के नेेतृत्व में एक टीम ने जोशीमठ का सर्वेक्षण किया था। शोध के बाद उन्होंने नवंबर माह में 28 पृष्ठों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसमें उन्होंने माना था कि जोशीमठ के नीचे अलकनंदा में कटाव के साथ ही सीवेज और ड्रेनेज की व्यवस्था न होने से पानी जमीन में समा रहा है। इससे जमीन और अधिक धंस रही है.

दूसरे नंबर पर तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना – तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की टनल जोशीमठ के नीचे करीब एक किमी गहराई में गुजर रही है। 25 मई 2010 को करेंट साइंस शोध पत्रिका में प्रकाशित गढ़वाल विवि के पूर्व प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट व डॉ. पीयूष रौतेला के शोध पत्र में भी स्पष्ट कहा गया था कि परियोजना की टनल बोरिंग मशीन की वजह से पानी का रिसाव बढ़ रहा है जो कि भविष्य का खतरनाक संकेत है।

तीसरे नंबर पर अलकनंदा नदी में हो रहा भू-कटाव – जोशीमठ के जमीनोंजद हो जाने के पीछे अलकनंदा में कटाव भी एक बड़ी वजह। पिछले साल विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया था कि जोशीमठ शहर के नीचे अलकनंदा नदी से हो रहा कटाव भी खतरनाक साबित हो सकता है। इस वजह से भू धंसाव हो सकता है।

चौथे नंबर पर अनियंत्रित निर्माण कार्यों का बोझ – यहां हुए अवैध निर्माणकार्यों की गिनती ही नहीं है। लोगों द्वारा बहुमंजिला मकान बना दिए गए हैं जिस वजह से ज़मीन पर दबाव बन गया है। बिना प्लानिंग के मकान बनाए गए, सरकार ने भी दखलंदाजी नहीं की जिसका दुष्परिणाम आज समस्त जोशीमठ को उठाना पड़ रहा है।आवासीय एवं व्यावसायिक भवनों के अंधाधुंध निर्माण से प्रति वर्गमीटर जमीन पर दबाव बढ़ गया है, जिससे भू धंसाव को बढ़ावा मिल रहा है।

पांचवे नंबर पर भूस्खलन क्षेत्र में बसा शहर – जोशीमठ भूस्खलन में बसा हुआ शहर है। 1970 में अलकनंदा की बाढ़ के बाद यूपी सरकार ने 1976 में तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की 18 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में सिंचाई, लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर, रुड़की इंजीनियरिंग कालेज (अब आईआईटी) और भूर्गभ विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट भी शामिल थे। वहीं कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह माना था कि जोशीमठ भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्र है। और इसके ढलानों से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। यहां पर किसी भी प्रकार का खनन नहीं होना चाहिए।
