Memory उत्तराखंड – सिंधु घाटी सभ्यता के महान पुरातत्वविद “रविंद्र सिंह बिष्ट” को किया हमने याद

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उत्तराखंड – सिंधु घाटी सभ्यता सुप्रसिद्ध स्मारक जिसके पुरातत्व विद महान रविंद्र सिंह बिष्ट को याद करने का आज स्वर्णिम अवसर है. दरअसल, उन्होंने भारत सरकार द्वारा 2013 में पुरातत्व के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पदम श्री से सम्मानित होकर भारत का मान बढ़ाया था. चलिए जानते हैं इनका जन्म और इनकी करियर की शुरुआत कहां से हुई—-

बता दे, रविंद्र सिंह बिष्ट का जन्म 2 जनवरी 1944 को उत्तराखंड के भीमताल नैनीताल में लेफ्टिनेंट एलएस BHIST के घर हुआ था. जहां पर स्थानीय स्कूलों में उनकी शिक्षा-दीक्षा उन्हें प्राप्त हुई थी. सन 1958 में विशारद की डिग्री स्क्रीन की और सन 1960 में साहित्य रत्न की परीक्षा उत्तीर्ण कर बहस संस्कृत साहित्य के विद्वान बने. अपनी शिक्षा के क्रम को बदलते हुए उन्होंने सन 1965 में लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति में मास्टर डिग्री हासिल की थी। ​​इसके बाद उन्होंने सन 1967 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संचालित स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी से सन 2002 में पुरातत्व विषय को लेकर स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया गया था। रवींद्र सिंह बिष्ट ने अपने अकादमिक अध्ययन को पूरा करने के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय से अपनी थीसिस इमर्जिंग पर्सपेक्टिव्स ऑफ द हर्रपन सिविलाइजेशन इन द लाइट ऑफ रिसेंट एक्सकेवेशन्स इन बनावली एंड धोलावीरा के लिए डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी।

करियर की शुरुआत 

सन 1969 में पंजाब के पुरातत्व और संग्रहालय विभाग में वरिष्ठ तकनीकी सहायक के रूप में की थी। उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विभिन्न पुरातात्विक स्टेशनों में अधीक्षण पुरातत्वविद के रूप में कार्य किया था। उन्होंने अपने सेवा कार्यकाल के समय अलग-अलग क्षमताओं में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था। वह पुरातत्व विभाग के केंद्रीय सलाहकार बोर्ड के सचिव, कांडला में सीमा शुल्क विभाग के लिए विशेषज्ञों की समिति के अध्यक्ष और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा अजंता और एलोरा पर बहु-विषयक अंतरिम प्रस्तुति के समन्वय निदेशक रहे। वह सेवाकाल के समय कुमाऊं विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और ज्ञान प्रवाह, सांस्कृतिक अध्ययन और अनुसंधान केंद्र वाराणसी की अकादमिक समितियों में सम्मिलित रहे। वह भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की समीक्षा समिति के पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान गोवा, डेक्कन कॉलेज स्नातकोत्तर और अनुसंधान संस्थान पुणे, अजंता की अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ पैनल समिति, एलोरा संरक्षण के साथ पर्यटन विकास परियोजना, पुरातत्व विभाग–संग्रहालय–अभिलेखागार विभाग बिहार सरकार के पुनर्गठन के लिए समिति और विश्व की चार महान सभ्यताओं की स्क्रीनिंग और मूल्यांकन समितियों के सदस्य रहे।

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