चमोली – हम सभी इस समय 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के उपलक्ष में मनाते हैं. जगह-जगह नए प्यार के दो पंछी घूमते फिरते नजर आते हैं. परंतु आज ही का वह दिन हैं जिस दिन पुलवामा अटैक हुआ था… उसे कैसे भूल सकते हैं. जी हां, आज लगभग पुलवामा अटैक 2019 से 2023 तक के सफर में 4 साल हो चुके हैं. जिसमें देश के 44 जवानों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था, तो आज हम उन्हें कैसे ना याद करें—-
भले ही इस Attack में देश ने 44 जवानों को खोया था. उन 44 जवानों में से 2 जवान उत्तराखंड के लिए थे. जिनका नाम है-शहीद मोहनलाल रतूड़ी और विरेंद्र सिंह जिन्हें 1988 में सीआरपीएफ का हिस्सा बनने का मौका मिला था. परंतु वह इस घटना का शिकार हो गए.
सबसे पहले जानते हैं- शहीद मोहनलाल रतूड़ी के बारे में यह मूल रूप से उत्तरकाशी चिन्यालीसौड़ के रहने वाले थे. वह साल 1988 में सीआरपीएफ में शामिल हुए थे. मोहनलाल के बड़े बेटे शंकर रतूड़ी ने बताया है कि पिता हमेशा देश की रक्षा को लेकर उनसे बातें करते थे. छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र हो या फिर जम्मू के आतंकी क्षेत्र इनके कई किस्से मोहनलाल ने बच्चों को सुनवाई थी.
अब बात करते हैं- शहीद जवान विरेंद्र सिंह की जिन्हें पुलवामा अटैक में शहीद होना पड़ा था. वीरेंद्र सिंह खटीमा के मोहम्मदपुर भुढ़िया गांव से हैं. वीरेंद्र सिंह के दो बच्चे हैं… जिनके सिर में असमय ही पिता का साया उठ गया है. शहीद विरेंद्र सिंह के दो बड़े भाई जय राम सिंह व राजेश राणा है. जयराम सिंह बीएसएफ के रिटायर्ड सूबेदार हैं…. जबकि राजेश राणा घर में खेती बाड़ी का काम देखते हैं. वही शहीद अवसर पर सीएम धामी ने हमले में शहीद हुए देश के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि भी अर्पित की है.